Om Sai Ram

Om Sai Ram
Om Sai Ram

Tuesday, August 24, 2010

अतीत के झरोखें........


दिन के उजाले में कही शाम नज़र आयी है

सहरों-शाम अब तू ही तू हर खासो-आम नज़र आयी है

ये हवा आज इतनी मदमस्त क्यों बह रही है ?

लगता है आज फिर ये तेरा कोई पैगाम ले के आयी है


वो नादाँ है जो इश्क का दर्द नही समझते ...

कभी डूब के देख माशूक कि मस्त निगाहों में

है इश्क तेरा सच्चा तो

वहीँ काशी कि गंगा और काबा कि खुदाई है ............
तरुण

Monday, August 23, 2010

फिर इक अदद शाम कि तलाश है मुझे ............


क्यूँ मेरी जिंदगी में अब शाम नही आती है ?
वो शाम जो बचपन में कई सपने ले के आती थी
वो शाम जिसमें खेलों के मैदान जवां होते थे ,
वो शाम जिसमें हम पतंग कि पेंचो में उलझ जाते थे

वो शाम जब हम सारे बंधनों से जुदा हो जाते थे
वो हंसी वो ठहाके वो दोस्तों कि शिरकत ,
वो शाम जिसमें हम जिंदगी खुद जिया करते थे
वो शाम अब क्यों नही आती है ?

क्यों अब सुबह के बाद सीधे रात हो जाती है ?
दोस्त तो अब भी हैं मगर अब वो हँसते नही
क्यों अब हँसने के लिए T.V कि मदद ली जाती है ?
इक दिन यूँ ही बैठा अपने दिल से सवालात किया

क्यों बोझिल है तू ,क्या कुछ नही है मुझपे ?
गाड़ी है बंगला है और शानोशौकत है
बता ख्वाहिश है क्या तेरी , किस चीज कि आस है तुझे ?

जवाब- ऐ –दिल था कि इक अदद शाम कि तलाश है मुझे
जो तेरी जिंदगी में अब नही आती है ................


आपका अपना
तरुण

Friday, August 20, 2010

खुशियों से भरी इस महफ़िल में


खुशियों से भरी इस महफ़िल में इंसान कितना तन्हा है ,
ये सोचता हू तो डरता हू कि ईमान कितना हल्का है
दुश्मन है दोस्त कभी ,दोस्त कभी दुश्मन है
चल रहा हू मै कहा ,कहा मेरी मंजिल है


कैसे लडूं इन तन्हाईयों से , कसे करू खुद पे यकी
है दर्द मेरे दिल में फिर भी चेहरे पे हँसी
ढूंढता हू उन बाँहों को , उन आँखों को लाखों में
जो सम्हाले मुझ को और देखे मुझको मुझमे कही


औरों कि नजर में मुझमे ना कही कोई कमी
पर जब देखता हूँ आईना तो मुझमे कही कुछ दिखता ही नही
इन आँखों में इक आस और मन में विश्वास लिए चलता हू
खोज में अपनी मंजिल कि खुद में मैं रोज जलता हू


खुद को जलाकर रौशनी से इस वीरानगी को हटाऊंगा मैं
जीत लिया अगर खुद को तो दुनिया को जीत जाऊंगा मैं
भ्रष्टाचार के इस युग में अभी प्यार कितना नन्हा है
खुशियों से भरी इस महफ़िल में इंसान कितना तन्हा है

Thursday, August 19, 2010

भोजपुरिया खाली गरमटिया नईखे रह गईल अब


जय हिंद मित्रों

अभी कुछ दिन पाहिले हम चंडीगढ़ में अपना बेटी के इलाज करावे के दौरान हम जब एगो ऑटो में बैठ के जात रहनी तबे अपना आदत अनुसार ऑटो वाले से पूछनी कि “ भईया कहा के हो ?” तब उ कहलस कि “यु पी “ तब हम फेरु ओहसे पूछनी कि “ भई यु पी में कहा के त उ का जवाब देत बन् कि “ बनारस के पास के “...चुकीं हमार पैदाइश बनारस के बा त ओकर नाम सुनके मन में और उत्सुकता बढल और फिर ओहसे सवाल दुहरा के पूछनी कि “ बनारस के पास कहा ? “ तब उ बतावने कि “सासाराम” ....


हम उनसे कहनी कि “भईया सासाराम त बिहार में बा और तू यु पी बतावत बड , कहे हो ? का बिहार एहिजा केहू न जाने ला का ?” तब उ जून उत्तर देहां जून सुन के आत्मग्लानी भी भईल और दुःख भी . उ कहने कि “ भईया तू उहवा के हौव त तोहके अच्छा लागत बा लेकिन एहिजा केहू अच्छा ना मानेला ओहर के लोगन के “ बड़ा दुख भईल कि हमनी के कहा से कहा पहुच गईनी सभे लेकिन हमनिये के कुछ भाई अबहू आपन गांव जवार के छोड़ के बाहर जा के काम करता खाली दू जून के रोटी खातिर और आपन घर बतावे में भी लजाता ............


भोजपुरिया समाज के अगर छोड दिहल जाय ता जाबो कही दू परानी एके जगह और भाषा के भेंटाने त अपनी भाषा में बतियावे ले ..अबहियों कही न कही एगो कसक बा हमनी के समाज में कि हमनी का अपने भाषा में बतियावे में लजानी जा.

अगर आज भोजपुरिया समाज के ऐ दशा बा त ओकर जिम्मेवार भी हमनी के बानी जा ...आज भोजपुरिया समाज के नौनिहाल कहवा नइखे स? हर बड कंपनी में हर सम्माननीय समाज में भोजपुरिया समाज के लोग बा लेकिन उ लोग आपन समाज, जहवा से उहा पहुचल बा छोड़े के बाद ओकर उपेक्षा करत बा , आपन लोग से अपने भाषा में न बोल के उधार में लिहल भाषा में बतियावत बा ताकि उनकर पोजीसन न खराब हो जाय ....आखिर काहे?

जब एगो बेटा आपन माई के सम्मान न करी त दूसर भला ओकर सम्मान कैसे करी? हमनी का नौकरी खातिर बाहर जात बानी जा त का आपन माटी के भुला जाईल जाई?हमनी का आपन लईका बच्चा के कान्वेंट में भेज के अंग्रेजी त सिखा सकेनी लेकिन उनकरा के आपन मातृभाषा के सिखाई जबले हमनी का न पहल करेब? और जब उ लईका कबहूँ अपने गावें जाई त का विचार आयी ओकरा मन में?

आज हमनी के जरुरत बा कि जे सक्छम बा ओह्के पहल करे के अपना गांव जवार के भाई लोगन के मार्ग दर्शन के कहे के देश त बहुत तरक्की कर लिहलस लेकि ऐ हमार दुर्भाग्य बा कि अभियो पूर्वांचल ,बिहार और झारखंड के बहुत अइसन जगह बा जौअन २० साल पीछे बा दुनिया से....कबले हमनी का एह आस में बईठल जाई कि नेता जी अयिहें और कुछो करिहें.....

इ त दुर्भाग्य बा भोजपुरिया समाज के ओह्के खाली लूटे खसोटे वाला नेतृत्व हे मिलल आज तक ले नहीं त कबो सोन चिरैया कहे जय वाला हिंदुस्तान के असली दिल त एहिजे धडकत रहे ......आजो झारखण्ड से जेतना कोयला निकलेला ओतना कही से नहीं से नहीं लेकिन उ कोयला निकले ले त झारखण्ड से लेकिन ओहसे उजाला कही और होखेला एहिजा रह जाला त खाली कालिख ........भारत के प्रशासनिक सेवा में सबसे जादा चयन बिहार से होखेला लेकि शर्म त तब आवेला जब दक्छिन भारत में इहवा से मेडिकल और इंजिनीरिंग पड़े गईल लईका के खाली इ वजह से मार दिहल जाला कि उ बिहारी बा और हमार कथित प्रशासनिक अधिकारी लोग मुह में अंगूरी डाल के तमाशा देखेला .

जबले आम आदमी जे शिक्छित बा उ आगे न आयी सही मायने में भोजपुरी के सम्मान न मिली . जबले हमनी का इ विश्वास न दिला लिहल जाई कि ३००० रुपया खातिर आपन बाल बच्चा घर बार छोड के कही जा के रेक्सा चलावाला के जरुरत नहिखे रह गईल इहवा के आदमी जन के तब ले सही मायने में भोजपुरी के सम्मान न मिली .

काहे ना हमनी के यहा कौनो बहुराष्ट्रीय कंपनी आपन फैक्ट्री लगावत बा ? काहे हमनी के भाई लोगन के इतना पढ़े के बाद दिल्ली और बैंगलोर में जा के नौकरी खोजे के पड़ता?

भोजपुरी के सम्मान सही मायने में तब मिली जब बैंगलोर क लईका बिहार /झारखण्ड आ के नौकरी खोजिहे ...................................ई तबे होई जब हमनी का जगल जाई और अगल बगल के लोगन के जगावल जाई .अपने ज्ञान का इस्तेमाल अपने गांव जवार के विकास खातिर करल जाई....अब मज़बूरी में जिए वाला दिन नईखे .....अब त मजबूर करे के बा ओह्के जे हमनी के माई के अस्मत बेंच के आपन जेब भरता ................


आपका अपना

तरुण तिवारी

Wednesday, August 18, 2010

सोन चिरैया

देख के ई नग्न नाच सभी केहू हताश बा
युग परिवर्तन होवे के अबहू तनीक कयास बा
अंतर्द्वंध से मन विचलित बा ,अब करे के कुछ प्रयास बा
हाथ मिला के चला ए भईया , सोन चिरैया आयी फेर से मन में ई विश्वास बा.

Monday, August 16, 2010

आजादी के मायने ?क्या हम आजाद है?आज स्वतंत्रता दिवस की ६३ वी वर्षगांठ पे मै तरुण आप सभी मित्रों को हार्दिक बधाइयाँ देता हुए कुछ सवाल आप सब से पूछता हू


जय हिंद मित्रों
आज स्वतंत्रता दिवस की ६३वी वर्षगांठ पे मै तरुण आप सभी मित्रों को हार्दिक बधाइयाँ देता हुए कुछ सवाल आप सब से पूछना चाहता हू जो मेरे जेहन में काफी दिनों से कौंध रहे है.
मित्रों क्या हम सही मायने में आजाद हो गए है? क्या है आज कल की युवा पीढ़ी के लिए आजादी के मायने? बस एक दिन का अवकाश या और कुछ?
कई सालों से देखता चला आ रहा हू की १५ अगस्त हो २६ जनवरी हमारे देश में बस एक अवकाश मात्र हो के रह गए है, २,४ गिनी चुनी फिल्मे दिखा दी जाती है टेलिविज़न पे और कुछ प्रोग्राम्स जिनमे तिरंगा ले के सेलेब्रिटीज हमे ये अहसास दिलाते है की हम आजाद है....क्या यही आजादी है ?क्या इसी आजादी के लिए लाखों लोगो में अपनी क़ुरबानी दी थी?
हमे बचपन में माता पिता आजाद भगत सिंह और गाँधी की विचार धारा के बारे में बताते थे और बताया जाता था की जब भी राष्ट्रगान सुनो तो पूरी आस्था के साथ सावधान की मुद्रा में उसका सम्मान करो और आज भी बरबस ही हमारे कदम रुक जाते है जब कही से भी ये धुन हमारे कानो में पड़ती है . पर आज राष्ट्रगान को एक मनोरंजक गाने में भी पेश करने से गुरेज नही किया जाता जिसे लोग आराम से पॉपकॉर्न खाते हुए बिस्तर पे बैठ के देखते है.
आज आजादी का दिन लोग अपनी बड़ी बड़ी गाडियों पे तिरंगा लगा के मानते है और शाम होते ही वो गौरवशाली तिरंगा जिसके सम्मान के लिए लोग जान देने से भी पीछे नही हटते थे कभी ,वो सडकों पे बिखरा दिखाई देने लगता है , नालियों में दीखता है क्या यही आजादी है?और यही हमारा देशप्रेम?
अगर ये आजादी है तो मेरी नजर में वो गुलामी ही बेहतर थी जिससे
लड़ने का जज्बा तो था हम में शायद .तब तो हम केवल अंग्रेजो से लड़ रहे थे अपने सम्मान के लिए ,
.....एक आम भारतीय के सम्मान के लिए .पर आज तो कई दुश्मनों से लड़ रहे है ,कही आतंकवाद से तो कही नक्सलवाद से कही जातिवाद से और कही भ्रष्टाचार से . उन दिनों हमारी लड़ाई अंग्रेजो थी जो की प्रत्यक्ष लक्छित थी पर आज तो अपने हे कुछ लोगो की गुलामी से जूझ रहा है ,आज की लड़ाई तो और भी कठिन है क्यों की आज दुश्मन अप्रत्यक्ष रूप में हमारे आस पास ही घूम रहा है.
आज फिर वो दिन आ गया है जब हमे क्रांति की आवश्यकतामहसूस होने लगी है, क्रांति आज की व्यवस्था के खिलाफ आज के परिवेश के खिलाफ
हमे आज फिर भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु की आवश्यकता जान पड़ती है और एक एक की संख्या में नही लाखों की संख्या में पहले हमारा देश अंग्रेजी दासता से पीडित था आज फिर वही देश दासता से पीडित है पर यह दासता अंग्रेजो या किसी बाहरी की दी हुई नही है ,यह हमारे ही देश के चंद लोगो की देन है जो हमारे ऊपर शासन कर रहे है हमारे बीच नेता बने हुए बैठे है और देश को बेच के खा रहे है
मैं ये नही कहता कि यह कोई जान नही रहा है या समझ नही रहा है पर मुझे आश्चर्य तो तब होता है जब कोई इसके खिलाफ आवाज नही उठाता, विरोध नही करता है मैंने तो सुना है कि अन्याय करने वाले से कही अधिक दोषी अन्याय सहने वाला होता है तो फिर वे दोषी नही दोषी हम है
मैं आज के युवा वर्ग से एक सवाल करता हू कि आखिर कब तक हम इनके अन्यायों को सहते रहेंगे और इनके हाथों कि कठपुतली बनकर नाचते रहेंगे? आखिर कब तक हम अपने देश को इन चंद लोगों के हाथों का खिलौना बनता देखते रहेंगे?
अगर हम में थोड़ी भी शर्म बाकि है तो अब हमें जागना चाहिए ,इनका विरोध करना चाहिए
मैं आज तक समझ नही पाया कि ये नेतागण आखिर किस चीज कि राजनीति करते हैं ,इनका मुद्दा क्या है – दो भाइयों को आपस में बांटकर , लड़ा कर वोट पाना,मंदिर के नाम पे मस्जिद के नाम पे ,दलित के नाम पे सवर्ण के नाम पे,हिंदू के नाम पे मुस्लमान के नाम पे आखिर कब तक कोई नेता वोट मांग मांग कर अपनी राजनितिक रोटी सेंकता रहेगा?
आखिर कब तक हमारा भारत विकाशसील रहेगा? हम विकसित कब होंगे? आखिर क्या कमी है हम में ? क्यों अमेरिका,जापान विकसित हैं? क्या हमारे देश में दिमाग की कमी है ? श्रम की कमी है? नही हमारे देश में अराजकता है ,भ्रष्टाचार है जो की वह नही है जो विकसित है वहाँ लोग अपने वतन के प्रति ईमानदार है इसीलिए वे विकसित है.
इसका एकमात्र उपाय है कि युवा शक्ति जागरूक हो और सम्पूर्ण शक्ति के साथ भ्रष्टाचार का विरोध करे
हमारे नेतागण फालतू मुद्दों पे खूब बहस करते है परन्तु ये नेता उस वक्त कहा होते है जब अमेरिका हल्दी ,तुलसी गोमूत्र अदि पे पेटेंट करा रहा होता है?
यदि इसी प्रकार चलता रहा तो वो दिन दूर नही जब हमारे पूर्वजो के लिखे वेड ,उपनिषद भारत में नही बल्कि न्युयोर्क के WHITE HOUSE में प्राप्त होंगे और उन्हें पढ़ने के लिए हमें अमरीकियों कि आज्ञा लेनी पड़ेगी
आज हमारे कितने मित्र गण कितने युवा बेरोजगार हैं ,ऐसा नही है कि उनके पास योग्यता नही है ज्ञान नही है ,उनके पास वे सारी चीजे है किन्तु उन्हें नौकरी नही मिल रही है हमारे नेता जी कहते है बेरोजगारी हटाओ और कहकर नौजवानों का वोट मांगते है पर ये नेता राष्ट्र को आर्थिक रूप से खोखला करते जा रहे है ये वो जोंक है जो सिर्फ और सिर्फ पैसा चूसता है जब देश में पैसा हे नही रहेगा तो नौजवानों को रोजगार खा से मिलेगा?
एक मंत्री साल भर में तीन लाख कि सिर्फ चाय पिता है लगभग दस लाख का पेट्रोल बर्बाद करता है इस प्रकार एक मंत्री लगभग १५ लाख रूपये बर्बाद करता है जिससे यदि ५००० रूपये मासिक कि नौकरी दी जाय तो २५ ,कम से कम २५ नौजवानों को रोजगार मिल जायेगा तो सोचिये जरा भारत में लगभग ५००० मंत्री और विधायक है कितने नौजवानों कि जिंदगी ये माननीय नेता जी अपनी चाय कि चुस्कियों में उदा देते है?