
दिन के उजाले में कही शाम नज़र आयी है
सहरों-शाम अब तू ही तू हर खासो-आम नज़र आयी है
ये हवा आज इतनी मदमस्त क्यों बह रही है ?
लगता है आज फिर ये तेरा कोई पैगाम ले के आयी है
वो नादाँ है जो इश्क का दर्द नही समझते ...
कभी डूब के देख माशूक कि मस्त निगाहों में
है इश्क तेरा सच्चा तो
वहीँ काशी कि गंगा और काबा कि खुदाई है ............
तरुण