Om Sai Ram

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Friday, August 20, 2010

खुशियों से भरी इस महफ़िल में


खुशियों से भरी इस महफ़िल में इंसान कितना तन्हा है ,
ये सोचता हू तो डरता हू कि ईमान कितना हल्का है
दुश्मन है दोस्त कभी ,दोस्त कभी दुश्मन है
चल रहा हू मै कहा ,कहा मेरी मंजिल है


कैसे लडूं इन तन्हाईयों से , कसे करू खुद पे यकी
है दर्द मेरे दिल में फिर भी चेहरे पे हँसी
ढूंढता हू उन बाँहों को , उन आँखों को लाखों में
जो सम्हाले मुझ को और देखे मुझको मुझमे कही


औरों कि नजर में मुझमे ना कही कोई कमी
पर जब देखता हूँ आईना तो मुझमे कही कुछ दिखता ही नही
इन आँखों में इक आस और मन में विश्वास लिए चलता हू
खोज में अपनी मंजिल कि खुद में मैं रोज जलता हू


खुद को जलाकर रौशनी से इस वीरानगी को हटाऊंगा मैं
जीत लिया अगर खुद को तो दुनिया को जीत जाऊंगा मैं
भ्रष्टाचार के इस युग में अभी प्यार कितना नन्हा है
खुशियों से भरी इस महफ़िल में इंसान कितना तन्हा है