‘‘मुझे दु:ख पसंद है। यह मुझे भगवान के पास ले जाता है।’’ नीम करोली बाबा ।
शायद हम सभी को दुःख पसंद है । कम से कम मुझे तो है ही । इसका कारण ये हो सकता है की मैंने आनंद का अनुभव किया ही नही कभी । वो छद्म अहसास जिसे हम आनंद कहते हैं क्या वो वास्तविक आनंद होता है ?
पूछो अपने मन से .... नही न !
हर वो कार्य जो हमें लगता है आनंद दे रहा है अगले ही क्षण दुःख के गलियारे में पहुँचा देता है एक नयी अपेक्षा के साथ क्योंकि मानव मात्र की प्रवृति है कि भोग्य को भोगने के पश्चात वो अपनी अगली आकांक्षा के बारे में सोचना शुरू कर देता है जो की फिर उसे दुःख के सागर में डुबो देता है ।
आनंद तो वो है जिसे पाने के बाद किसी और की आकांक्षा ही न रह जाए ।
तरुण ©®