Om Sai Ram

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Tuesday, August 24, 2010

अतीत के झरोखें........


दिन के उजाले में कही शाम नज़र आयी है

सहरों-शाम अब तू ही तू हर खासो-आम नज़र आयी है

ये हवा आज इतनी मदमस्त क्यों बह रही है ?

लगता है आज फिर ये तेरा कोई पैगाम ले के आयी है


वो नादाँ है जो इश्क का दर्द नही समझते ...

कभी डूब के देख माशूक कि मस्त निगाहों में

है इश्क तेरा सच्चा तो

वहीँ काशी कि गंगा और काबा कि खुदाई है ............
तरुण

5 comments:

  1. वाह!! बहुत खूब!

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  2. बहुत बढिया .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद .......आप सभी को भी रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  4. है इश्क तेरा सच्चा तो
    वहीँ काशी कि गंगा और काबा कि खुदाई है ............
    वाह क्या बात है ... सच है इश्क़ सब से ऊपर है .....
    राखी का पर्व मुबारक हो ...

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